UCC Kya Hai, भारत में सभी नियम और कानून सभी लोगों पर एक समान लागू होते है जैसे – भारत का संविधान, कान्ट्रैक्ट ऐक्ट, आईपीसी, सीपीसी इत्यादि।
लेकिन इन सबमें एक सबसे बड़े अपवाद के रूप में सामने आता है और वह है Personal Laws, जो कि धार्मिक आधार पर अलग-अलग है।
यह हिंदुओं के लिए अलग, मुस्लिमों के लिए अलग, सिख के लिए अलग और इसी तरह हर धर्म के लिए अलग-अलग नियम है।
अब यहीं पर इन सभी धर्मों के बीच एकरूपता लाने के लिए Article 44 यानि “यूनिफॉर्म सिविल कोड” को लाने की बात की जा रही है।
Hello Dosto, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में UCC Kya Hai, इसके क्या फायदे और नुकसान है और यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत क्यों है?
UCC Kya Hai –
UCC का फुल फॉर्म “Uniform Civil Code” होता है, हिंदी में इसे “समान नागरिक संहिता” कहा जाता है।
अंग्रेजों के आने के पहले भारत में राजतन्त्र के रूप में राजा कार्य करते थे, ऐसे में न्याय करने के लिए अलग-अलग राजा अपने धर्म के अनुसार निर्णय लिया करते थे।
हिन्दू राजा शास्त्र के आधार पर अपना निर्णय सुनाया करते थे, जिसका व्याख्या (Interpretaion) ब्राह्मण किया करते थे, चाहे किसी भी तरह का केस हो सबके बारे में जानकारी शास्त्रों में दी गई होती थी, उसी के आधार पर ब्राह्मण राजा को बताया करते थे और राजा अपने निर्णय सुनाया करते थे।
जबकि मुस्लिम नवाब, शरिया कानून को मानते थे, शास्त्रों की तरह शरिया कानून में सभी तरह के केस के बारे में जानकारी दी गई होती थी, जिसका व्याख्या (Interpretaion) काज़ी किया करते थे और उसके आधार पर नवाब इसे लागू करते थे।
जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में आई तो इन्होंने अपने अंग्रेजी भाषा के आधार पर इंग्लिश कॉमन लॉ भारत में लागू किया और इसके लिए कोर्ट की स्थापना की गई।
जब भारतीय धार्मिक मामलों पर निर्णय लेने की बात हुई तो ये सवाल खड़ा हुआ कि आखिर कौन सा कानून माना जाएगा, ऐसे मामले जहां दोनों धर्मों से जुड़े मामले होते तो ब्राह्मण और काज़ी दोनों को अपने व्याख्या (Interpretaion) के लिए बुलाया जाता था।
धीरे-धीरे 1862 तक भारत के अलग-अलग हिस्सों में हाईकोर्ट स्थापित हो चुके थे, जैसे – कलकत्ता हाईकोर्ट, बॉम्बे हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट
और नए अंग्रेजी कानून में अलग-अलग धार्मिक कानून भी बनने लगे थे, जैसे – Hindu Widow Remarriage Act 1865, Hindu Women’s Right to Property Act 1937 और Hindu Inheritance Act 1929 इत्यादि।
इसी तरह मुस्लिमों के लिए लिए भी पर्सनल लॉ बनने लगे जैसे – Muslim Personal Law (Shariat) Application Act 1937, Dissoution of Muslim Marriage Act 1939 इत्यादि।
भारत की आजादी से पहले तक जब तक भारत का संविधान की ड्रैफ्टिंग कमेटी बनाई गई, इस तरह के कुछ कानून दोनों धर्मों के लिए बनाए जा चुके थे।
जब ड्राफ्टिंग कमेटी बैठी तब Uniform Civil Code in Hindi लाने का प्लान बनाया गया और इसपर काफी डिबेट हुए, तब ड्राफ्ट में यूनिफॉर्म सिविल कोड, Article 35 के अंदर रखा गया था।
ड्राफ्टिंग कमेटी के कुछ सदस्यों का कहना था कि इसे फंडामेंटल राइट का भाग होना चाहिए और कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया।
अंत में 5:4 के बहुमत से यह निर्णय लिया गया कि यूनिफॉर्म सिविल कोड Directive Principle of State Policy के अंदर रखा जाएगा और जब भारत का संविधान लागू हुआ तब, यूनिफॉर्म सिविल कोड को Article 44 में रखा गया।
कुछ महीने पहले दिल्ली उच्च न्यायालय के द्वारा भारत के न्याय विभाग के सचिव को पत्र लिखकर यह निर्देश दिए गए कि जितना जल्दी हो सके यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू किया जाए।
वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सायरा बनो केस में ट्रिपल तलाक को अवैध बताते हुए, यूनिफॉर्म सिविल कोड को लाने की बात की।
अनुच्छेद 44 क्या है? –
संविधान में वर्णित अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से मिलता जुलता है, इसमें यह कहा गया है कि राज्य अपने नागरिकों के लिए सम्पूर्ण भारत में सभी नागरिकों के लिए “समान नागरिक संहिता” प्रदान करने का प्रयास करेगा।
यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत –
आज भी आप इसके ऊपर लोगों के विचार देखेंगे तो अलग-अलग विचार देखने को मिलेंगे, खासतौर पर धार्मिक आधार पर।
तो क्या सच में यूनिफॉर्म सिविल कोड एक धार्मिक मुद्दे के आधार पर बनाया गया है, कहीं इसका इस्तेमाल करके किसी एक खास वर्ग को रेडीक्लाइज नहीं किया जा रहा है, तो जवाब है नहीं।
अगर आसान शब्दों में कहा जाए तो यह पूरा मुद्दा समाज के अंदर से ऐसे कानूनों को हटाने का है जो समाज में भेदभाव, एक दूसरे धर्म के प्रति अपमान, और बिना किसी लॉजिक के अभी भी हमारे समाज में है।
जैसे भारत से छुआछूत जैसे सामाजिक भेदभाव को सालों पहले हटाया गया वैसे ही यूनिफॉर्म सिविल कोड कुछ ऐसी ही सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए है, जैसे –
1. ‘आईपीसी सेक्शन 494’ ये कहता है कि एक पत्नी के रहते हुए यदि कोई व्यक्ति दूसरी शादी करता है तो ये एक क्राइम है, लेकिन यदि यही कम कोई मुस्लिम व्यक्ति करता है तो उसे चार शादियाँ करने की इजाजत है।
2. हिन्दू लॉ में विवाह का अपूरणीय विघटन, डिवोर्स के लिए एक पर्याप्त ग्राउन्ड नहीं है।
3. हिन्दू शादियों में पत्नी का पति के प्रॉपर्टी पर आधा का हक होता है, लेकिन मुस्लिम महिला आधे से कम संपत्ति पर अधिकार रखती है, इसके अलावा मुस्लिम महिलायें, हिन्दू महिलाओं की तरह लंबे समय तक मेंटेनेस क्लेम नहीं कर सकती है।
4. यूनिफॉर्म सिविल कोड, सभी नागरिकों की शादी के लिए एक समान उम्र निर्धारित करता है, जो कि लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 साल है, जबकि एक धर्म को इसमें छूट दी गई है।
5. इन सबके अलावा और भी Personal Laws, जो कि धार्मिक आधार पर अलग-अलग है, हिंदुओं के लिए अलग, मुस्लिमों के लिए अलग, सिख के लिए अलग और इसी तरह हर धर्म के लिए अलग-अलग नियम है।
6. अलग-अलग राज्यों में शादियों को लेकर अलग-अलग कानून बने हुए है, जैसे राजस्थान में कुछ कम्युनिटी में शादी करने पर तलाक लेने की अनुमति नहीं है जबकि, बाकी अन्य जातियों में है, ऐसी कम्युनिटी में शादी करने के बाद तलाक ले पाना वास्तव में बहुत मुश्किल हो जाता है, क्योंकि कानून अलग है।
UCC के पक्ष में तर्क –
राजस्थान में एक ऐसा मामला जिसमें एक व्यक्ति अपनी पत्नी से तलाक चाहता था वह मीणा समुदाय से संबंधित थे।
मीणा कम्युनिटी राजस्थान में अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत रखा गया है, तलाक लेने के लिए उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
ट्रायल कोर्ट में उनकी एप्लीकेशन को रिजेक्ट कर दिया गया, इसके पीछे का कारण उनकी पत्नी उनकी पत्नी ने एक पॉइंट पर न्यायाधीश के सामने अपनी बात रखी।
कि सर हमने शादी भले ही हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के अनुसार की हो लेकिन हम राजस्थान के अंदर अनुसूचित जनजाति से संबंध रखते है और अनुसूचित जनजाति को राजस्थान में तलाक देने की अनुमति नहीं है।
बाद में पति ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपनी बात रखी और जब दोनों पक्षों ने अपनी बात रखी तो दिल्ली हाईकोर्ट इस नतीजे पर पहुँचा, चूंकि दोनों पक्षों की गलती न होकर इसमें सरकार की गलती है।
क्योंकि ऐसे कानून बनाए गए है जिसमें लोग फंस जाते है जब एक देश है तो अलग-अलग कानून क्यों???
इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार को आदेशित किया कि जल्दी से जल्दी Uniform Civil Code in Hindi को लागू किया जाए।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने के लिए आदेश दे चुका है।
शाह बानो केस –
UCC के लेकर सबसे चर्चा में शाह बानो केस का नाम जरूर लिया जाता है, 1985 का यह केस जिसमें शाह बानो नाम की महिला (मुस्लिम) जिनका निकाह अहमद खान के साथ हुआ था।
35 साल तक साथ रहने के बाद उनके पति ने मुस्लिम रीति रिवाजों के अनुसार तीन बार तलाक बोलकर तलाक दे दिया।
पाँच बच्चे और 60 वर्ष की उम्र में तलाक मिलने के बाद इन्होंने अपने पति से गुजारा भत्ते की मांग की।
पति ने ये कहते हुए इस मांग को खारिज कर दिया कि ये इस्लामिक कानून में जायज नहीं है, इसमें गुजारा भत्ते जैसी कोई चीज ही नहीं है।
बाद में मामला अदालतों से होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में इसपर अपना निर्णय लेते हुए, अहमद खान को CRPC की एक धारा के तहत आदेश देते हुए कहा इन्हें अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा।
अब क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को एक महिला के अधिकार के लिए दिया था, इसलिए यह तब से लेकर आज भी चर्चा में रहता है।
इसके बाद कई मुस्लिम धर्मगुरु ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और सरकार के ऊपर नैतिक दबाव बनाना शुरू कर दिया।
उस समय तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने इस दबाव के कारण एक कानून “मुस्लिम महिला तलाक पर संरक्षण अधिकार अधिनियम 1986” को लागू किया।
इस कानून के अनुसार अगर कोई मुस्लिम अपनी प्रथा के अनुसार तलाक देता है तो उसे गुजारा भत्ता देने की कोई आवश्यकता नहीं होगी, इस कानून की मदद से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलट दिया गया।
इसके बाद वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सायरा बनो केस में ट्रिपल तलाक को अवैध बताते हुए, यूनिफॉर्म सिविल कोड को लाने की बात की।
इसके अलावा, डेनियल लतीफ़ी मामला, सरला मुद्गल केस, जॉन वल्लामट्टम केस जैसे कई सारे केस है जिनपर अदालत का फैसला एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसके आधार पर UCC को लाया जाना चाहिए।
यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है? –
UCC के आने से विवाह, तलाक, गोद लेने और संपत्ति में सभी के लिए एक नियम हो जाएंगे।
परिवार के सदस्यों के आपसी संबंध और अधिकारों में समानता का अधिकार होगा।
विशेष जाति, विशेष धर्म या विशेष परंपरा के आधार पर नियमों में कोई छूट नहीं होगी।
Uniform Civil Code in Hindi के अंतर्गत किसी भी धर्म विशेष के लिए अलग से कोई नियम नहीं, सभी धर्म एक समान होंगे।
UCC हो लागू तो क्या होगा? –
UCC के तहत शादी और उसका पंजीकरण, तलाक, संपत्ति, गोद लेने जैसे मामले सभी के लिए एक होंगे।
सभी धर्मों में शादी, तलाक के लिए एक ही कानून होंगे, मतलब जो कानून हिंदुओं के लिए, वहीं दूसरों के लिए भी मान्य होंगे।
बिना तलाक के एक से ज्यादा शादी नहीं कर पाएंगे, हिन्दू धर्म में यह सालों पहले ही खत्म किया जा चुका है, अब दूसरे धर्मों से भी इसे हटा दिया जाएगा।
धर्म विशेष के मुताबिक जायदाद का बंटवारा नहीं होगा बल्कि संविधान के अनुसार जो भी नियम कानून होंगे उनके हिसाब से कार्य किये जाएंगे।
UCC लागू होने से क्या नहीं बदलेगा? –
धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं, जो जैसे है वो उसी तरह से पहले की तरह चलती रहेंगी।
किसी भी धर्म के धार्मिक रीति-रिवाज पर असर नहीं होगा, ऐसा नहीं है कि शादी पंडित या मौलवी नहीं कराएंगे, सब पहले की ही तरह चलते रहेंगे।
किसी के खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर प्रभाव नहीं पड़ेगा, यह आप अपने धर्म के मुताबिक पहले की तरह ही फॉलो कर सकेंगे।
UCC लागू करने वाले राज्य –
गोवा, समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा अपवाद के रूप में सामने आता है, गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है।
भारतीय संविधान में गोवा को विशेष राज्य के दर्जे के साथ पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का भी अधिकार प्राप्त है।
गोवा में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है और सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्तराधिकार के कानून समान हैं।
गोवा में कोई भी तीन तलाक नहीं दे सकता है, रजिस्ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्य नहीं होगी, संपत्ति पर पति-पत्नी को समान अधिकार मिला हुआ है।
हालांकि, गोवा में भी एक अपवाद है,यहां मुस्लिमों को गोवा में चार शादी का अधिकार नहीं है, लेकिन हिंदुओं को दो शादी करने की छूट दी गई है, लेकिन कुछ शर्तों पर।
UCC लागू करने वाले देश –
दुनिया के कई देशों पहले से ही UCC की तरह ही व्यवस्था लागू की गई है, जैसे – पाकिस्तान, बांग्लादेश, इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस, इसके अलावा यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून बनाए गए है, जो सभी धर्मों के लिए समान रूप से लागू होता है।
दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होते है।
बीजेपी का घोषणा पत्र –
बीजेपी जो कि पहले जनसंघ के रूप में जानी जाती थी, सालों पहले अपने चुनावी घोषणापत्र में तीन प्रमुख मुद्दे, श्री राम मंदिर निर्माण, जम्मू कश्मीर से धार 370 को हटाना और UCC को लागू करना है।
बाद में बहुतमत से सरकार बनाने के बाद मोदीजी के नेतृत्व में दो वादों को पूरा किया जा चुका है, संभव है कि अब तीसरी टर्म में UCC को लागू कर दिया जाए, जिसका अनुमान मोदी जी पहले ही दे चुके है।
Summary –
Uniform Civil Code in Hindi, अगर इतिहास के पन्ने में देखा जाए तो सभी धर्म अलग-अलग जगहों से विकसित हुए है और उनके अंदर तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार ही मान्यताएं विकसित हुई, जो समय के साथ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आत्मसात होती चली गई।
बदलाव करके ही हम इंसान इक्कसवीं सदी में खुद को इतना विकसित कर पाए है, इसलिए यह भी एक बदलाव का ही पड़ाव है जहां हमें कुछ पुरानी हो चुकी प्रथाओं और सामाजिक कुरीतियों को पीछे छोड़ आगे की राह देखनी चाहिए।
अगर देखा जाए तो आजादी के बाद से ही इसे लागू हो जाना चाहिए था, जैसा कि संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी ने कहा था, लेकिन सरकारों ने इसे अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए इसे दशकों तक फ़ाइलों के नीचे दबाए रखा।
इस लेख में इस Uniform Civil Code के बारे में कुछ बिंदुओं को समेटने का प्रयास किया गया है, ये सभी जानकारियाँ इंटरनेट पर मौजूद सूचनाओं का संकलन है।
तो दोस्तों, यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है (Uniform Civil Code Kya Hai) इसके बारे में यह लेख आपको कैसा लगा, अपने सवाल और सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें और इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, Thank You 🙂
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