कार्बन क्रेडिट क्या है, Carbon Credit in Hindi, Carbon Credit Kya Hai
उद्योगों के बिना मानव जीवन के इस स्तर तक हुए विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है, इतिहास में देखें तो पिछले लगभग 100 सालों में औद्योगीकरण काफी तेजी से बढ़ा है।
नई नई फैक्ट्रियों को स्थापित करने की रेस में हमने प्रदूषण को भी काफी तेजी से बढ़ाया है।
इसी प्रदूषण को एक इनडायरेक्ट तरीके से कम करने के लिए कई बड़ी कंपनियां कंपनियां कार्बन क्रेडिट का प्रयोग करती है।
Hello Dosto, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, कार्बन क्रेडिट के बारे में Carbon Credit Kya Hai, कार्बन क्रेडिट क्या है, इसका महत्व, और इतिहास के बारे में बात करेंगे।
Carbon Credit Kya Hai –
कार्बन क्रेडिट जैसा कि नाम से प्रतीत होता है यह किसी चीज को जमा करने या एकत्र करने के बारे में लगता है।
धरती के फेफड़े कहे जाने वाले जंगल काफी तेजी से खत्म हो रहे है, जैसे-जैसे हम मानव विकास की तरफ बढ़ रहे है एक तरह से हम विनाश की तरफ बढ़ रहे है।
जंगलों की अंधाधुंध कटाई और उद्योगों से निकलता प्रदूषण आज के समय में हर इंसान को बीमार कर रहा है।
अब इसके लिए जरूरी है कि हम अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों जैसे – सोलर एनर्जी, वायु ऊर्जा और जल शक्ति इत्यादि ऊर्जा के प्राकृतिक और असीमित स्त्रोत का प्रयोग करें।
लेकिन ऐसा होना अभी के समय में बहुत मुश्किल होता दिख रहा है, तो जब तक हम, ऊर्जा के इन स्त्रोतों पर शिफ्ट नहीं करते तब तक अस्थाई रूप से इससे बचने का तरीका है कार्बन क्रेडिट।
कार्बन क्रेडिट एक तरह का सर्टिफिकेट है जो किसी कंपनी को कार्बन उत्सर्जन करने की अनुमति देता है।
हम जानते है कि आमतौर पर लगभग हर उद्योग में कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, क्लोरो फ़्लोरो कार्बन जैसी सैकड़ों तरह की जहरीली गैसें निकलती है।
अब इन हानिकारक गैसों को वातावरण में जाने से रोकने के लिए या तो कंपनी को इसका उत्सर्जन कम करना होगा, या फिर वे किसी ऐसे प्रोजेक्ट में निवेश करें जो वातावरण में से प्रदूषण को कम करते हों।
अब प्रदूषण को कम करने के लिए जंगल से अच्छा तो कोई उपाय नहीं हो सकता है, ऐसे में बड़ी-बड़ी कंपनियों को ऐसे प्रोजेक्ट करने होते है।
ऐसे प्रोजेक्ट को कार्बन क्रेडिट के नाम से जाना जाता है, आसान भाषा में समझें, कि अगर आपने जितनी गंदगी की है उतनी ही सफाई कर दें तो गंदगी हुई ही नहीं।
तो हम कार्बन उत्सर्जन को गंदगी मान लें तो, कार्बन क्रेडिट उस गंदगी की सफाई होती है।
अब यदि कोई कंपनी जो इस प्रोजेक्ट को नहीं करती है तो वो ये कार्बन क्रेडिट किसी थर्ड पार्टी के माध्यम से हासिल करती है।
ये थर्ड पार्टी वेंडर अपने प्रोजेक्ट में जंगल या कुछ इस तरह के प्रोजेक्ट करते है जिससे प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है।
इस तरह के प्रोजेक्ट से जितना भी पर्यावरण साफ होता है उसे कार्बन क्रेडिट में गिना जाता है।
बाद में यही कार्बन क्रेडिट उन कंपनियों को उद्योगों को बेच दिया जाता है जो प्रदूषण फैलाते है, बदले में ये उद्योग इस कार्बन क्रेडिट को खरीदने के लिए एक बड़ी कीमत चुकाते है।
1 कार्बन क्रेडिट का मतलब होता है, 1 टन कार्बन डाई आक्साइड या इसी वजन के बराबर दूसरी हानिकारक गैसों को पर्यावरण में जाने से रोका गया है या हवा को स्वच्छ किया गया है।
कोयला, तेल और प्राकृतिक गैसें ये सब जीवाश्म ईंधन है जो धरती से निकाले जाते है।
जो भी उद्योग इन इंधनों का इस्तेमाल करते है वो सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करते है, इन उद्योगों में पावर प्लांट, स्टील उद्योग और फूड इंडस्ट्री में आदि प्रमुख है।
कार्बन क्रेडिट के फायदे –
Carbon Credit in Hindi, चूंकि कार्बन क्रेडिट का बिजनेस हमारी धरती के लिए सबसे अच्छे बिजनेस में से एक है, क्योंकि इसमें जंगलों को फिर स्थापित करना होता है।
ये जंगल आज के समय में न सिर्फ हमारी सबसे बड़ी जरूरत है बल्कि धरती पर सभी जीवों के लिए भी जरूरी है।
पैसे के लिए ही सही लेकिन कार्बन क्रेडिट से एक साथ कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है, जो कुछ इस प्रकार है –
वन्यजीव –
वन अनगिनत प्रजातियों का घर हैं जो कहीं और मौजूद नहीं हैं – जिनमें कई पौधों की प्रजातियां शामिल हैं जो चिकित्सा के लिए महत्वपूर्ण हैं, और कृषि के लिए महत्वपूर्ण परागणकर्ता हैं।
पानी –
वन जल चक्र के पावरहाउस हैं, जो वर्षा में योगदान करते हैं, पानी को रोकते और फ़िल्टर करते हैं – और आसन्न समुदायों के लिए बाढ़ नियंत्रण प्रदान करते हैं।
भोजन और नौकरियाँ –
लाखों लोग वनों द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर सीधे निर्भर हैं, जिनमें स्वच्छ जल, खाद्य सुरक्षा और नौकरियों से संबंधित सेवाएँ भी शामिल हैं।
सतत विकास –
कार्बन परियोजनाओं से प्राप्त राजस्व वन समुदायों में सामाजिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य कार्यक्रमों को वित्तपोषित करता है, और लाखों लोगों के लिए टिकाऊ और आर्थिक रूप से लचीली नौकरियों का समर्थन करता है।
इसकी जरूरत क्यों पड़ी? –
कार्बन क्रेडिट क्या है और हवा साफ़ करने का ये व्यापार चलता कैसे है ये समझेंगे, लेकिन पहले जान लेते हैं कि ये एयर-पॉल्यूशन को कम करने का मिड-वे कैसे बना
रसायन विज्ञान की भाषा में समझें तो जीवाश्म ईंधन हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होते हैं, इसमें हाइड्रोजन और कार्बन के अलग-अलग कम्पोजीशन वाले कंपाउंड्स मौजूद होते है।
आज से करोड़ों साल मृत पौधे और समुद्री जीव-जंतु जब समुद्र की तलछट में दबे होने के बाद फॉसिल फ्यूल्स में बदल गए है।
यानि लकड़ी, कोयले, तेल जैसी सभी तरह के इंधनों में हाइड्रोजन और कार्बन है, जो कभी भी समाप्त नहीं होते, जब इनका इस्तेमाल ईंधन की तरह जलाने में किया जाता है तो एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित हो जाते है।
तो फॉसिल फ्यूल्स को जब जलाया जाता है तो ग्रीन हाउस गैस, कार्बन डाई डाईऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाईट्रस ऑक्साइड वगैरह जैसी बहुत सी जहरीली गैसें निकलती है।
ये गैसें ही हमारी पृथ्वी की हवा बेहद खराब कर रही हैं, अब इन उद्योग-धंधों की वजह से बढ़ते ‘एयर पॉल्यूशन’ को रोकने के तीन प्रभावी तरीके हैं
1. फैक्ट्रीयों को बंद किया जाए –
कार्बन क्रेडिट (Carbon Credit in Hindi) को कम करने का पहला तरीका तो ये है कि इंडस्ट्रीज़ पूरी तरह बंद कर दी जाएं, लेकिन ये स्टेप कुछ वैसा ही है कि किसी उपलब्ध संसाधन का प्रयोग ही न करें ताकि वो हमेशा सर्वसुरक्षित बना रहे।
अभी जिस तरह की दुनिया हम इंसानों ने बना दी है उसे देखकर ऐसा होना असंभव लगता है, क्योंकि आज के समय में उद्योगों के बिना काम चलना बहुत मुश्किल है।
1. प्राकृतिक स्त्रोत –
कार्बन उत्सर्जन को कम करने या रोकने का दूसरा तरीका है यह है कि उद्योगों को पूरी तरह से प्राकृतिक ऊर्जा स्त्रोतों से चलाया जाए।
जैसे – सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी, वाटर एनर्जी इत्यादि।
लेकिन अभी के समय में ऐसा होना मुश्किल है, कुछ सालों में ऊर्जा के दूसरे स्त्रोतों पर उद्योगों को शिफ्ट करना भी एक बड़ी चुनौती है।
3. कार्बन क्रेडिट –
बाकी के दो उपायों को देखकर हमने समस्या को समझ लिया, अब इसका तीसरा समाधान है कार्बन क्रेडिट जिसमें कि कोई फैक्ट्री जितना प्रदूषण फैलती है उतना ही उसे पेड़ पौधे या दूसरे स्त्रोत लगाने होंगे जो उस प्रदूषण को वातावरण से कम कर सकें।
इससे इंसान अपना औद्योगीकरण जारी रखते हुए विकास भी कर पाएंगे और हवा में प्रदूषण भी कम किया जा सकेगा।
कार्बन क्रेडिट काम कैसे करता है?
हमने ये समझ लिया कि कार्बन क्रेडिट ही एक ऐसा रास्ता है जिससे हम विकास और स्वच्छ वातावरण दोनों हासिल कर सकते है।
साल 1997में, UNNFCC यानी ‘यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ के द्वारा क्योटो प्रोटोकॉल बनाया और ये तय हुआ कि क्योटो प्रोटोकॉल साइन करने वाले देश ग्रीनहाउस गैसेज़ के उत्सर्जन पर बनाए गए नियमों का पालन करेंगे।
इसके बाद में 2015 के पेरिस समझौते में भी जलवायु परिवर्तन को लेकर कुछ रूल्स बनाए गए, जिन पर दुनिया के 195 देशों ने सहमति जताई।
इन प्रोटोकाल और समझौते के अनुसार कार्बन क्रेडिट के नियम कुछ इस प्रकार थे –
कोई भी देश या इंडस्ट्री एक ‘तय की गई लिमिट’ से ज्यादा कार्बन डाई-ऑक्साइड या उसके ही बराबर किसी दूसरी ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन नहीं कर सकते है।
इस लिमिट को तय करने के लिए जिस मात्रक का प्रयोग किया गया उसे कार्बन क्रेडिट कहा गया और एक कार्बन क्रेडिट बराबर एक टन कार्बन डाई-ऑक्साइड या इसी के जैसी किसी दूसरी ग्रीन हाउस गैस की मात्रा को माना गया।
और शर्त यह रखी गई कि कोई भी देश उतने ही टन ग्रीन हाउस गैस को पर्यावरण में छोड़ सकता है जितने कि उसके पास कार्बन क्रेडिट मौजूद होंगे।
उदाहरण के लिए मान लीजिए कि किसी X देश ने क्योटो प्रोटोकॉल पर साइन किया और उसे कार्बन एमिशन के लिए लिमिट के तौर पर 5 कार्बन क्रेडिट दिए गए।
अब वह X देश अधिकतम 5 टन कार्बन डाई-ऑक्साइड पर्यावरण में छोड़ सकता है, यदि उस देश का कार्बन उत्सर्जन इससे ज्यादा है तो उसके पास दो उपाय है –
पहला तो वो कुछ ऐसी नई तकनीक विकसित करें, जिससे उसका इंडस्ट्रियल कार्बन का उत्सर्जन कम हो जाए और कार्बन क्रेडिट की उनकी लिमिट न टूटे, इस तरह उस देश के उद्योग सामान्य तौर पर चलते रहेंगे।
यदि वह X देश ऐसा करने में असफल होता है तो उसे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा और दूसरा रास्ता ये है कि वो दूसरे किसी देश में ऐसी कोई टेक्नोलॉजी डेवलप कर दे जिससे कि उस दूसरे देश में जहरीली गैसों का उत्सर्जन कम हो जाए।
टेक्नोलॉजी डेवलप होने के बाद प्रोजेक्ट ने काम किया और उस देश के यहां 1 टन कार्बन डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन कम हुआ, तो क्योटो प्रोटोकॉल के मुताबिक इन्वेस्टमेंट करने वाली कंपनी को 1 टन कार्बन डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन कम करने के बदले 1 कार्बन क्रेडिट मिल जाता है।
इसी तरह अगर उस प्रोजेक्ट से 100 टन कार्बन डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन कम हुआ होता तो 100 कार्बन क्रेडिट (Carbon Credit in Hindi) मिलते है।
कार्बन क्रेडिट कैसे बनता है –
कार्बन क्रेडिट के लिए ऐसे कई प्रोजेक्ट्स हैं जैसे बायो-मेथेनेशन प्लांट्स, बड़े पैमाने पर पौधारोपण, बायो-फ़र्टिलाईजर प्रोजेक्ट्स, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, यहां तक कि ऐसे बल्ब या लाइटिंग प्रोजेक्ट्स जो एनर्जी एफ़ीशिएंट हों।
इन प्रोजेक्ट्स को कार्बन-क्रेडिट प्रोग्राम में VCS यानी Verified Carbon Standard के तहत रजिस्टर कराना पड़ता है।
किसी प्रोजेक्ट में कार्बन क्रेडिट प्राप्त करने की प्रक्रिया के पांच स्टेप होते है –
1. प्रोजेक्ट सेटअप करना, जिसमें पेड़-पौधे लगाना या प्राकृतिक स्त्रोतों को निर्मित करना होता है
2. प्रोजेक्ट को मेंटेन करके रखना।
3. प्रोजेक्ट के द्वारा साफ किये गए कार्बन की मात्रा का अवलोकन करना।
4. प्रोजेक्ट द्वारा प्राप्त कार्बन क्रेडिट की कीमत लगाना
5. और अंत में किसी मान्यता देने वाली एजेंसी द्वारा मान्यता मिलने के बाद, उसे अन्तरराष्ट्रीय बाजार में बेचना
कार्बन क्रेडिट जनरेट करने वाली एक्टिविटीज, कार्बन पाज़िटिव कहलाती है, और इसमें जबसे ज्यादा सामान्य और ज्यादातर प्रोजेक्ट में आते है, फॉरेस्ट से जुड़े प्रोजेक्ट।
माँ लीजिए किसी कंपनी ने किसी जमीन को खरीद और बहुत सालों तक उस जमीन पर पेड़ लगाना शुरू कर दिया, इस तरह एक वहाँ जंगल बन गया और उसकी देखभाल करते रहे।
तो हर साल वह जंगल हर साल एक एक मात्रा में वह जंगल वातावरण से हानिकारक हवा को सोखने लगेगा, इससे हर साल उस कंपनी को एक उसके बदले कार्बन क्रेडिट मिलने लगेगा।
इसके अलावा कार्बन क्रेडिट को जनरेट करने का दूसरा सबसे अच्छा तरीका है, पवन चक्की तथा, सौर ऊर्जा और जल शक्ति इत्यादि।
कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग –
कार्बन क्रेडिट के बारे में हमने समझ लिया अब यह आज के समय में एक बिजनेस बन चुका है, कुछ कंपनियों ने इसमें पैसे कमाने के मौकों को देखते हुए कार्बन क्रेडिट कमाकर उसे ऐसे देशों या कंपनियों को बेचना शुरू कर दिया है जिन्हें इसकी ज़रूरत है।
इसी कार्बन क्रेडिट के प्रोडक्शन (उत्पादन)और बिक्री के बिज़नेस को कार्बन-ट्रेडिंग कहते है।
भारत में EKI और शेल मिलकर कार्बन-क्रेडिट कमाने और उन्हें दूसरी कंपनियों को बेचने का बिजनेस करती है।
EKI वर्ष 2009 से कार्बन क्रेडिट प्रोडक्शन के बिज़नेस में है और उन कंपनियों को कार्बन-क्रेडिट बेचती है जो अपनी लिमिट से ज्यादा कार्बन या कार्बन ऑफसेट्स का उत्सर्जन कर रहे है।
वर्ल्ड बैंक, इंडियन रेलवेज़, NTPC, अडानी ग्रुप, जापान का सॉफ्टबैंक ग्रुप, आदित्य बिरला ग्रुप और NHPC जैसी कई भारतीय और विदेशी कंपनियां EKI कार्बन क्रेडिट खरीदती है।
देश का सबसे स्वच्छ शहर कहे जाने वाले शहर ‘इंदौर’ का म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन पहली सिविक बॉडी है, जिसने साल 2020 में बायो-मीथेशन प्लांट्स लगाए और 1.7 टन कार्बन एमिशन रोका।
इसके बदले में इंदौर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने 50 लाख रूपए कमाए, इसके अलावा चेन्नई कॉर्पोरेशन और चेन्नई स्मार्ट सिटी लिमिटेड भी इसी रास्ते पर हैं।
साथ ही The New Indian Express के मुताबिक चेन्नई कॉर्पोरेशन के एक ऑफिसर कहते हैं, ‘चेन्नई कॉर्पोरेशन Miyawaki Urban Forests जैसे कई ग्रीन इनिशिएटिव प्रोजेक्ट्स चला रहा है।
ये प्रोजेक्ट्स कार्बन-एमिशन को कम करते हैं और कार्बन ट्रेडिंग के लिए एलिजिबल हैं, इससे होने वाले मुनाफे का इस्तेमाल हम शहर के दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में किया जा सकेगा।
अन्य शहर की बात करें तो साल 2021 में, दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) ने करीब 3.5 मिलियन कार्बन क्रेडिट्स की बिक्री से 19.5 करोड़ का राजस्व अर्जित किया।
आज के समय में यह सैकड़ों करोड़ का बिजनेस बन चुका है, धीरे-धीरे हम इसमें औरभी बड़ी कंपनियों को आते देखेंगे।
आज के समय में जैसे हम स्टॉक और शेयर मार्केट को रोजाना ट्रेड होते हुए देखते है, ठीक उसी तरह कार्बन क्रेडिट भी इससे संबंधित एक्सचेंज पर ट्रेड होता है।
कार्बन क्रेडिट की समस्याएं –
क्योटो प्रोटोकॉल के समझौते के दौरान विकासशील देशों ने लाखों की संख्या में कार्बन क्रेडिट अर्जित किया।
क्योटो प्रोटोकॉल समझौते के तहत केवल विकसित देशों को ही अनिवार्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करनी थी, अतः बहुत देशों ने इसे भारत तथा चीन जैसे देशों से खरीदकर, कार्बन उत्सर्जन बैलेंस किया।
कई देशों ने, पिछले कुछ वर्षों में खुद को क्योटो प्रोटोकॉल से अलग कर लिया, जिसके बाद वे उत्सर्जन में कमी करने के लिये बाध्य (जिम्मेदार) नहीं रहे, उनके इस निर्णय से कार्बन क्रेडिट्स की मांग में कमी हुई एवं भारत जैसे देशों को इसका नुकसान झेलना उठाना पड़ा।
मौजूदा समय में (लगभग) भारत के पास लगभग 750 मिलियन कार्बन क्रेडिट्स या CER है जिसकी बिक्री नहीं हुई है। ऐसे ही अन्य देश जिनके CER की बिक्री नहीं हुई है, वे चाहते हैं कि पेरिस समझौते के दौर में भी उनकी बिक्री हो सके।
इसके उलट विकसित देश इस समझौते का विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि क्योटो प्रोटोकॉल के नियमों तथा जाँच प्रक्रिया सुदृढ़ नहीं थी, इसलिए वे पेरिस समझौते के तहत नए सिरे से इसकी शुरुआत हो।
इस समझौते के विवाद का अन्य मुख्य कारण कार्बन क्रेडिट्स की दोहरी गणना तथा इसके समायोजन (Adjustment) से संबंधित है।
नई प्रक्रिया के अंतर्गत इन क्रेडिट्स को बाज़ार में देशों या निजी कंपनियों के बीच एक से अधिक बार खरीदा-बेचा जा सकता है, अतः इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि इन क्रेडिट्स की एक बार से अधिक गणना न की जाए, इससे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते है।
इसके अलावा विकासशील देशों का यह मानना है कि जिन देशों ने अपने उत्सर्जन में कमी की है उन्हें यह अधिकार हो कि वे अपने क्रेडिट्स को बेचने के बाद भी उत्सर्जन में हुई इस कमी को विश्व को दिखा सकें।
कार्बन क्रेडिट और भारत –
पिछले कई दशकों में अमेरिका जैसे विकसित देशों ने अंधाधुंध स्तर पर कार्बन का उत्सर्जन करके अब नेट जीरो कार्बन की ओर बढ़ रहे है।
जैसा कि हमने पढ़ा कि किसी देश के विकास के लिए उद्योग बहुत महत्वपूर्ण है और भारत अभी विकास को पाने के सही स्पीड पिछले कुछ सालों में आई है।
लेकिन अभी हमारी प्राथमिकता यही है कि हम कार्बन प्रदूषण को कम करते हुए विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करें।
इसी क्रम में प्रधानमंत्री “श्री नरेंद्र मोदी जी” ने नवंबर 2021 में UNFCCC के तहत हुई COP 26 सम्मेलन में यह घोषणा किया कि आने वाले सालों में वर्ष 2070 तक भारत जीरो कार्बन एमिशन के लक्ष्य को हासिल कर लेगा।
Carbon Credit Kya Hai, कार्बन क्रेडिट क्या है, Carbon Credit UPSC के बारे में ज्यादा जानने के इस विडिओ को देख सकते है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल –
कार्बन क्रेडिट क्या है
हानिकारक गैसों को वातावरण में जाने से रोकने के लिए या तो कंपनी को इसका उत्सर्जन कम करना होगा, या फिर वे किसी ऐसे प्रोजेक्ट में निवेश करना पड़ता है, इन प्रोजेक्ट से जितनी मात्रा में स्वच्छ वायु निकलती है उसे कार्बन क्रेडिट के रूप में गिना जाता है।
कार्बन क्रेडिट की शुरुआत कैसे हुई?
साल 1997में, UNNFCC यानी ‘यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ के द्वारा क्योटो प्रोटोकॉल बनाया और ये तय हुआ कि क्योटो प्रोटोकॉल साइन करने वाले देश ग्रीनहाउस गैसेज़ के उत्सर्जन पर बनाए गए नियमों का पालन करेंगे, इस प्रोटोकॉल के तहत कार्बन क्रेडिट की शुरुआत हुई।
1 कार्बन क्रेडिट का क्या अर्थ है?
1 कार्बन क्रेडिट का मतलब होता है, 1 टन कार्बन डाई आक्साइड या इसी वजन के बराबर दूसरी हानिकारक गैसों को पर्यावरण में जाने से रोका गया है या हवा को स्वच्छ किया गया है।
कार्बन ऑफसेट क्या है?
कार्बन ऑफसेट, कार्बन क्रेडिट के जैसा ही है, बस इन दोनों में थोड़ा बहुत अंतर होता है।
Summary –
Carbon Credit Kya Hai, कार्बन क्रेडिट क्या है, पर्यावरण में बढ़ रहा प्रदूषण आज के समय में हमारे लिए एक बहुत बड़ी समस्या है, इससे बचने के लिए जो भी जरूरी कदम हो सकते है उठाए जाने चाहिए।
कर्ब क्रेडिट इनडायरेक्ट तरीके से कई सारी चीजों को ठीक करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
तो दोस्तों, कार्बन क्रेडिट क्या है (Carbon Credit Kya Hai) इस विषय पर यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताइए कमेंट बॉक्स में अगर आपका इस टॉपिक पर कोई सवाल या सुझाव है तो उसे भी जरूर लिख भेजें, इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, Thank You 🙂
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